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मोदी सरकार के चार साल
युवा संवाद - जून 2018 अंक में प्रकाशित
भाजपा मोदी सरकार के चार साल नेतृत्व वाली मौजूदा केंद्र सरकार के चार वर्ष पूरे हो चुके हैं। अब वह चुनावी वर्ष में है। इन चार वर्षों की समीक्षा करें तो सहज कहा जा सकता है कि मोदी सरकार अपने ही वायदों से करीब-करीब पूरी तरह से मुकर कर एक अलग ही राह पर चलने लगी हैं जिसमें भाजपा-संघ की मूल सोच के अनुसार मुस्लिम विरोधी, सवर्णमानसिकता और मनुवादी क्रियाकलापों के पोषक संगठनों के अतिवादी लोगों को बेलगाम हो जाने का पूरा मौका मिला है। मोदी के शासन के चार वर्षों में झूठ और धर्मांधता ने ऐसी तरक्की की है कि आम लोग दो खेमे में बंट गए हैं। एक मोदी समर्थक और दूसरा मोदी विरोधी। मोदी सरकार के दौर में झूठ और झांसे के रूप में एक नई पद्धति विकसित हुई है, जिसमें प्रधानमंत्री स्वयं धड़ल्ले से झूठ का सहारा लेकर अपना भाषण देते हैं। इस दौर में धर्मांधता ने ऐसा माहौल बनाया है कि भाजपा और संघ की विचारधारा वाले सैकड़ों छोटे-बड़े संगठन महज हिंदुत्व के नाम पर देश भर में उत्पाद मचाने, सरेआम कानून की धज्जियां उड़ाने और संविधान विरोधी कार्यों में बेखौफ सक्रिय देखे जा सकते हैं।
मौजूदा सरकार के दौर में सबसे ज्यादा चर्चा पेट्रोल/डीजल के बढ़े दामों की है। आज 13 से 26 मई के बीच ही पेट्रोल के दाम लगभग चार रुपये बढ़े। कर्नाटक चुनाव से पहले ही अखबारों ने लिख दिया था कि पेट्रोल की कीमतें बढ़ेंगी और कीमतें बढ़ीं। भाजपा अध्यक्ष ने बयान दिया कि सरकार पेट्रोल की कीमतें कम करने का प्लान बना रही है लेकिन ऐसा कोई प्लान सामने नहीं आया और न कोई उस प्लान की चर्चा ही कर रहा है।
मोदी सरकार के दौर में बैंकों का घाटा इतिहास बना रहा है। पंजाब नेशनल बैंक, स्टेट बैंक आॅफ इंडिया, बैंक आॅफ बड़ोदा आदि की हालत खस्ता है। आईडीबीआई बैंक का सकल एनपीए 28 फीसद हो गया है। बैंक का पूरा सिस्टम लगभग ध्वस्त है। सरकार भी जानती है कि कई बैंक तो समाप्त होने की कगार पर हैं। नोट बंदी ने भी बैंकों की सेहत सुधारने में कोई बड़ी मदद नहीं की।
इन चार वर्षों में मोदी जी ने अपने चिर परिचित शैली में कई अनुप्रासों के सहारे रोज नए जुमले गढ़ते नजर आए हैं। वे हिंदी व अंग्रेजी के एक ही अक्षर से शुरू होने वाले कई शब्दों के घाल-मेल से ऐसे अनुप्रास बनाने और उसमें जनता को उलझाने के सबसे बड़े महारथी हैं। जैसे भारत को ब्रांड बनाने के ‘ब्रांड इंडिया’ के लिए उन्होंने फाईव टी अनुप्रास गढ़ा - टैलेंट, ट्रेडिशन, टुरिज्म, ट्रेड और टेक्नोलोजी। याद कीजिए, अपने सराकर के 100 दिन पूरे होने पर जब वे जापान गए थे तब उन्होंने भारत के लिए थ्री डी अनुप्रास गढ़ा था - डेमोग्राफिक डिवीडेंड, डेमोक्रेसी एवं डिमांड। उन्होंने कहा था ये तीनों एशिया में केवल भारत में हैं।
मोदी सरकार के बीते चार वर्षों में किसान, बेरोजगार और आदिवासियों की स्थिति भीषणतम है। प्रधानमंत्री ने किसानों को उनकी आय दोगुनी करने का झांसा दिया था तो बेरोजगारों को चाय, पकौड़े और पान तक के फरेब में फंसाया। इन चार वर्षों में अल्पसंख्यकों और आदिवासियों में गहरी निराशा और असुरक्षा बढ़ी। हाँ सरकारी दावों को यदि मानें तो कह सकते हैं कि ‘‘घर- घर बिजली’’ और ‘‘शौचालय’’ को सरकार तेजी से पूरा करने के लिए कार्य कर रही है।
मोदी के चार साल के शासन में सांप्रदायिक मुद्दे बार-बार सामने आए। मंदिर, गाय, लव जेहाद आदि समाज व अमन विरोधी कार्यों को अंसवैधानिक रूप से हिंदुत्ववादी संगठनों ने अपना अभियान बनाया और दंगे और असुरक्षा की स्थिति पैदा कर दी। वर्ष 2014 के बाद गाय से जुड़ी हिंसा के लगभग 65 मामलों में 28 नागरिकों को जान गंवानी पड़ी। भारत माता की जय और वन्दे मातरम् का नारा लगवाने के नाम पर कई जगह हिंसा हुई। यह अलग बात है कि इन हिंदुत्ववादियों को स्वयं न तो वन्दे मातरम् और न ही राष्ट्रगान पूरी तरह याद है। मोदी के शासनकाल में इतिहास को लेकर कई हास्यास्पद मामले सामने आए। कोई ताजमहल को शिव मंदिर बता रहा है तो कोई खिलजी को बर्बर शासक। ऐतिहासिक पात्रों में मुस्लिम नायकों को विलेन बताकर हिंदुत्ववादी संगठनों के कुछ कुपढ़ युवाओं ने देश में कई कांड किए जिससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ा। बलात्कार, हत्या के कई मामले को सांप्रदायिक रंग देने की पुरजोर कोशिश हुई जिससे देश में सद्भाव का माहौल बिगड़ा।
संदेह नहीं है कि मोदी के चार वर्षों के शासनकाल में दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक, आदिवासी, किसान, बेरोजगार आदि तबकों की हालत बदतर हुई है। स्थिति गंभीर है। सरकार की मौजूदा नीतियों ने अल्पसंख्यकों व दलितों को न केवल निराश किया है बल्कि उनमें अपने भविष्य को लेकर भारी आशंका है। मोदी सरकार को याद रखना चाहिए कि जिस संसद के चैखट पर सर झुका कर उन्होंने देश सेवा का संकल्प लिया था और जिस संविधान की शपथ लेकर वे देश की गद्दी पर बैठे थे उसके ‘राजधर्म’ का सच्चे मन से पालन करके ही वे देश के लोगों के हृदय सम्राट बन सकते हैं।