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बड़ी जीत की बड़ी चुनौतियाँ

युवा संवाद - जून 2019 अंक में प्रकाशित

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दूसरे कार्यकाल के लिए मिली इस बड़ी जीत के सामने बड़ी चुनौतियां भी हैं। सबसे बड़ी चुनौती भारत के विचार को बचाने और संविधान की भावना को सुरक्षित रखने की है। उसी तरह की चुनौती है भारत को मंदी और मिडल इनकम ट्रैप (मझोली आय का जाल) से बचाने की। भारत का विचार क्या है इस पर तरह तरह के मत हैं। एक मत यह है कि प्राचीन भारत में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और भाषा, संस्कृति अपने चरम पर पहुंची हुई थी और आज तक हम लगातार उस स्तर से नीचे ही गिर रहे हैं। आज जरूरत यह है कि उस प्राचीन गौरव को प्राप्त किया जाए। इस विचार के लोग मानते हैं कि प्राचीन भारत में पुष्पक विमान जैसी विकसित वैमानिकी थी तो गणेश जैसे देवता का सिर काटकर उस पर हाथी का सिर लगाने वाली प्लास्टिक सर्जरी और कौरवों के सौ भाइयों की टेस्ट ट्यूब बेबी वाली तकनीक भी थी। प्राचीन भारत में परमाणु विज्ञान, खगोलशास्त्र सब कुछ विकसित था।

 

दूसरा विचार यह है कि भारतीय सभ्यता तेजस्वी जरूर थी लेकिन ज्ञान का आकस्मिक नहीं क्रमिक विकास हो रहा है। उसमें अगर प्राचीन भारत के ऋषियों, कारीगरों और राजाओं का योगदान रहा है तो मध्ययुगीन और आधुनिक वैज्ञानिकों और शासकों का भी कम योगदान नहीं था। विज्ञान का विकास दुनिया में अलग- अलग जगह होता रहता है और उसमें एक प्रकार के समन्वय और आदान प्रदान की प्रक्रिया चलती रहती है। उसमें अरब से आए व्यापारियों और मुगलों के ज्ञान का योगदान है तो यूरोप से आए अंग्रेजों के ज्ञान का भी। आज भारत को अगर दुनिया में अगर अपनी महत्त्वपूर्ण जगह बनानी है तो न सिर्फ विज्ञान की तरक्की पर ध्यान देना होगा बल्कि वैज्ञानिक सोच भी विकसित करनी होगी। यह इस बात से प्रमाणित होगा कि भारत में कितने मौलिक वैज्ञानिक शोध होते हैं और हमारे कितने वैज्ञानिकों को नोबेल समेत दुनिया के कितने पुरस्कार प्राप्त होते हैं। भाजपा मुख्यालय में कार्यकर्ताओं को और बाद में संसदीय दल के सदस्यों को संबोधित करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमें संविधान में पूरा विश्वास है और हम उसकी भावना की रक्षा करेंगे। उन्होंने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की बात की और विरोधियों को भी अपना बताया।

 

उन्होंने यह भी कहा कि इस चुनाव से न सिर्फ भ्रष्टाचार का मुद्दा गायब था बल्कि सेक्यूलरिज्म भी गायब था। उन्होंने जाति व्यवस्था पर प्रहार करते हुए कहा कि अब देश में दो ही जातियां हैं। एक है गरीबों की जाति और दूसरी है गरीबी से मुक्त करने वालों की जाति। इसमें कोई दो राय नहीं कि अल्पसंख्यक वोटों के दम पर खड़ा सेक्यूलरिज्म का विमर्श इस चुनाव में पराजित हुआ है। अल्पसंख्यकों की रक्षा करना एक बात है लेकिन उनकी कट्टरता और दकियानूसी परपंराओं की रक्षा करना दूसरी बात है। देखना यह है कि मोदी सरकार इनमें से दूसरे पर प्रहार करते हुए पहले को कैसे बचाती है। यह एक जटिल प्रक्रिया है और इसे गोरक्षकों के हवाले नहीं छोड़ा जा सकता। तीन तलाक संबंधी विधेयक के बाद अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं ने मोदी में एक रक्षक की छवि देखी है। देखना है कि अल्पसंख्यक समुदाय में असुरक्षा पैदा किए बिना और बहुसंख्यकों से उनका सौहार्द बिगाड़े बिना मौजूदा सरकार किस तरह उनमें सुधार करने वालों को प्रोत्साहित करती है। ध्यान रहे कि अल्पसंख्यकों की कट्टरता को घटाने  का मतलब बहुसंख्यक समाज की कट्टरता को बढ़ाना

कतई नहीं है।

 

सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती संविधान में दिए गए धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को बचाने की है। जिस संगठन से भाजपा निकली है उस राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को इस मूल्य से विशेष चिढ़ है और मोदी उसी प्रेरणा से इस पर हमला भी करते हैं। लेकिन जब वे संविधान की रक्षा की बात करते हैं तो इस मूल्य को किसी भी तरह से बचाना उनका धर्म हो जाता है। मोदी ने यह भी कहा है कि यह वर्ष गांधी की 150 वीं जयंती का वर्ष है और 2022 में भारत की आजादी के 75 साल भी हो रहे हैं। देखना है कि वे इन दोनों अवसरों का उत्सव मनाते हुए क्या उन विचारों को सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करते हैं जो स्वतंत्रता सेनानियों और हमारे पुरखों के थे।

 

इस सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था की है। मंदी का संकट सिर पर मंडरा रहा है। प्रधानमंत्री को आर्थिक सलाह देने वाली परिषद के एक सदस्य रथिन राय ने तीन माह पहले ही चेतावनी दे दी है कि भारत मझौली आय के जाल में फंसने जा रहा है। यानी उसकी आर्थिक प्रगति जिस दस करोड़ के उच्च वर्ग के उपभोग पर निर्भर थी वह अब थक चुका है। अब भारत के विकास के इंजन को खींचने का सारा दारोमदार मध्य वर्ग पर आ चुका है। जबकि मध्य वर्ग की आय बढ़ ही नहीं रही है। मध्य वर्ग की आय न बढ़ने के कारण न तो एअरपोर्ट का ट्रैफिक बढ़ रहा है और न ही कारों की बिक्री बढ़ रही है। कारों की बिक्री तो आठ साल के सबसे निचले स्तर पर है। अपार्टमेंट भी नहीं बिक रहे हैं और रीयल इस्टेट ठहरा हुआ है। इसमें आय की बढ़ती असमानता का बड़ा योगदान है। एक तरह से हम ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के उस हालात में पहुंचते जा रहे हैं जहां पर विकास दर तो है लेकिन जनता की हालत खराब है। मझौले स्तर के आय का वैश्विक दायरा 996 डालर प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय से 3,895 डालर के बीच है। भारत में यह स्तर 1,795 डालर प्रति व्यक्ति है। इससे अलग चीन में प्रति व्यक्ति आय का स्तर 8,690 डालर है। यही वजह है कि चीन अमेरिका को टक्कर दे रहा है और उसकी तमाम पाबंदियों के बावजूद उसका मुकाबला कर रहा है। जबकि हम अमेरिका के नजदीक जाने में ही प्रसन्न हैं और उसकी शर्तों को मानकर ईरान से किनारा किए जा रहे हैं। इस सरकार के समक्ष बदलती अंतरराष्ट्रीय स्थितियों में ईरान और अरब देशों से रिश्ते ठीक रखने के साथ आतंकवाद से लड़ते हुए पाकिस्तान से बेहतर संबंध बनाने की चुनौती है। इस बड़ी जीत को इन चुनौतियों पर खरा उतरना ही होगा।

 

उधर विपक्षी दलों को इस हार से सबक लेना चाहिए और यह मान लेना चाहिए कि अब उन्हें आंदोलनकारी विपक्ष की भूमिका निभानी है। उन्हें सोचना होगा कि पंद्रह प्रधानमंत्री बनाने के वैकल्पिक माडल को देश ने खारिज कर दिया है। वह बहुसंख्यकवादी जरूर हुआ है लेकिन उसकी समस्याएं जस की तस हैं। ऐसे में अगर लोकतंत्र और भारत के विचार को बचाना है तो कांग्रेस, सपा, बसपा, माकपा, भाकपा से जनता दल (एस), द्रमुक और तृणमूल कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों को अपनी हस्ती मिटाकर भारत में नया विकल्प खड़ा करना होगा।