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अंक के प्रमुख आकर्षण

दिसंबर 2016

संपादकीय

विमुद्रीकरण या सोची समझी चाल?

युवा संवाद - दिसंबर 2016 अंक में प्रकाशित

 

भारत के विकास के एक गहरे नासूर, काली या कलुषित अर्थव्यवस्था को जोरदार तरीके से कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम अचानक उठाया गया है। देश की आमदनी, संपदा और अन्य संसाधनों पर गैर कानूनी तौर-तरीकों से देश के धनी, सत्ताधारी और प्रसिद्ध लोगों के एक बड़े वर्ग ने कब्जा जमा लिया है। ...

 

आगे पढ़े...

यह जो बिहार है: एक बिहारी सब पर भारी — डाॅ. योगेंद्र

सामयिकी: जनता की तकलीफ की राजनीति — प्रेम सिंह

वैश्वीकरण: आर्थिक ’सुधारों‘ के पच्चीस साल — कमल नयन काबरा

श्रद्धांजलि: फिदेल कास्त्रो — अशोक कुमार पांडेय

बंच ऑफ थॉट: वैचारिक पुंज के छेद — डॉ योगेन्द्र

टैक्स हैवन्स: टैक्स हैवन्स क्या करते हैं? — जेम्स एस हैनरी

टैक्स हैवन्स: विकासशील देशों की लूट को... — जेम्स एस हैनरी

टैक्स हैवन्स: विकासशील देशों की काॅरपोरेटी लूट — डाॅ. ग्लेज ब्रूक

अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार: ब्रिटेन खुद कितना भ्रष्ट है? — इयान फ्रेजर

लातीनी अमेरिका: आज में छिपा कल — आश नारायण राय

बरबादी के शहर: बदसूरती के पैरोकार स्मार्ट शहर — योगेश दीवान

मुक्त बाजार व्यवस्था: मुक्त व्यापार समझौते का मुखर... — मार्टिन खोर

चिंतन: कोझीकोड़ से दिल्ली तक का सफर — चिन्मय मिश्र

बेयर और मोनसांटो: नापाक इरादों का गठजोड़ — मार्था रोजेनवर्ग और रोनी क्यूमिन्स

सांप्रदायिकता: मुरदों का शहर — प्यारेलाल

कावेरी जल विवाद: हम कावेरी के बेटे-बेटी — महादेवन रामस्वामि

बाल कुपोषण: निर्दयता की पराकाष्ठा — चन्द्रकांत देवताले

स्त्री: महिला स्वतंत्रता का समाजशास्त्र — डाॅ. ज्योति सिडाना

शिक्षा: ग्रामीण विकलांगों में शिक्षा की ... — विकास कुमार विक्की

बेबाक: कोई सवाल न उठाया करो यारो! — सहीराम

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