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मानवता के लिए अनिवार्य अंबेडकर
युवा संवाद - दिसंबर 2017 अंक में प्रकाशित
जन्म के एक सौ छब्बीसवें और परिनिर्वाण के इकसठवें वर्ष में बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के चिंतन और विचारों की अधिक प्रासंगिकता है। उन्होंने लोकतांत्रिक मूल्यों, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक परिवर्तन के लिए आजीवन संघर्ष किया।...
खंड-1: जीवन-चिंतन
खंड-2: संघर्ष
खंड-3: स्त्री
खंड-4: बौद्ध धर्म
खंड-5: मीडिया
खंड-6: जाति
अंबेडकर की जीवनी के संदर्भ — संदीप मधुकर सपकाले
समतामूलक समाज और अंबेडकर की प्रतिष्ठापना — डी.एन. प्रसाद
अंबेडकर की बौद्ध विचारधारा — रमेश कुमार
मध्य यूरोप, हंगरी में अंबेडकर — जितेंद्र सोनकर
अंबेडकर और उनके आंदोलनों की रूपरेखा — शुभांगी शंभरकर
अंबेडकर के शोध में लोकतांत्रिक मूल्य — प्रेम कुमार
सामाजिक पुनर्रचना के शिल्पकार अंबेडकर — दिलीप लक्ष्मण गिरहे
डाॅ. अंबेडकर का स्त्री चिंतन — मीना
महिला मानवाधिकारों के पुरोधा डाॅ. अंबेडकर — चित्रलेखा अंशु
इतिहास चिंतन में डाॅ. अंबेडकर की नारी दृष्टि — धूपनाथ प्रसाद
भारतीय संविधान में महिलाओं के अधिकार — रजनीश कुमार अंबेडकर
दलित स्त्री के मनुष्य बनने की छटपटाहट — प्रीति सागर
दलित महिलाएं और भारतीय समाज अस्मिता — राजुरकर
अंबेडकर ने जगाई जीवन जीने की ललक — सुरजीत कुमार सिंह
डाॅ. अंबेडकर और बौद्ध धम्म — रमेश कुमार
डाॅ. अंबेडकर, पत्रकारिता और बहुजन अवधारणा — कृपाशंकर चौबे
अंबेडकर की पत्रकारिता: आवश्यकता और प्रासंगिकता — नेहा नेमा
अंबेडकर का भारतीय पत्रकारिता में योगदान — विकास चंद्र
डाॅ. अंबेडकर और हिंदू कोड बिल — शशि गौड़
जाति और सामाजिक न्याय — विकाश सिंह मौर्य
पिछड़े वर्ग के लिए अंबेडकर का योगदान — संजय गजभिए