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रियो ओलंपिक के सबक

युवा संवाद - सितबंर 2016 अंक में प्रकाशित

रियो ओलंपिक के बाद इसमें हिस्सा लेने वाले तमाम देश अपनी उपलब्धियों का मूल्यांकन करें और तोक्यो में होने वाले अगले ओलंपिक की तैयारियों में व्यस्त हो जाएंगे। भारत से गये खिलाड़ियों का प्रदर्शन बहुत संतोषजनक नहीं रहा। बैडमिंटन में पीवी सिंधू ने रजत और कुश्ती में सा{ाी मलिक ने कांस्य पदक दिलाया, यानी इस बार भारत को महज दो पदकों से संतोष करना पड़ा। यह पिछले ओलंपिक में हासिल किए गए छह पदकों के मुकाबले काफी कम है। इसके अलावा, अगर  किसी खिलाड़ी की उपलब्धि दर्ज की जा सकी तो वे दीपा कर्मकार थीं, जो बहुत मामूली अंतर से जिम्नास्टिक में कांस्य पदक से चूक गईं। लेकिन सवाल है कि इतना बड़ा देश होने और पिछले ओलंपिक के मुकाबले इस बार सबसे बड़ी टीम भेजने के बावजूद भारत इस कदर क्यों पिछड़ गया?

 

हालांकि अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत के हाशिये पर रह जाने के कारण छिपे नहीं रहे हैं। लेकिन इस बार जो एक-दो घटनाएं किसी तरह पता चल सकीं, उनसे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ओलंपिक जैसी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता तक को लेकर यहां के खेल प्रबंधन से जुड़े महकमे और अधिकारी किस हद तक लापरवाह हो सकते हैं। दीपा कर्मकार जब बहुत मामूली अंतर से पदक से वंचित रह र्गइं, तब उजागर हुआ कि किस तरह बेवजह की बाधा के चलते उनके फिजियोथेरेपिस्ट तब रियो पहुंचे, जब वे फाइनल में पहुंच र्गइं। जबकि भारत से कई ऐसे नेता और अधिकारी वहां गए थे, जिनकी कोई आवश्यकता या उपयोगिता नहीं थी।

 

मगर सबसे गंभीर आरोप मैराथन धावक ओपी जैशा के मामले में सामने आए। हैरानी की बात है कि बयालीस किलोमीटर की दौड़ के दौरान जहां इसमें भाग लेने वाली सभी धावकों के लिए उनके देशों के अधिकारियों ने हर दो किलोमीटर के बाद पानी और ‘एनर्जी ड्रिंक’ मुहैया कराया, भारत की धावक ओपी जैशा को कहीं भी अपने देश के प्रबंधन से जुड़े लोग या अधिकारी नहीं मिले,जबकि भारत के लिए जगहें निर्धारित थीं। जैशा को कड़ी धूप में दौड़ते हुए आठ किलोमीटर की दूरी पर रियो ओलंपिक के प्रबंधकों की ओर से किए गए थोड़े इंतजाम से संतोष करना पड़ा। यही वजह है कि दौड़ पूरी होते ही जैशा गिर र्गइं और काफी देर तक बेहोश पड़ी रहीं। बल्कि उनका कहना है कि उन्हें ऐसा लगा कि अब वे मर  जाएंगी। इस मसले पर एथलेटिक्स फेडरेशन आॅफ इंडिया की हैरान करने वाली सफाई एक तरह से जैशा पर ही झूठ बोलने के आरोप के रूप में सामने आई।

 

 

 

 

 

 

सवाल यह है कि कभी बेहद गरीबी से संघर्ष करके मैदान में उतरी जिस खिलाड़ी ने अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में देश के लिए कई पदक जीते और आज तक कोई शिकायत नहीं की, उसे आज अपना दुख बयान करने की जरूरत क्यों पड़ी। विडंबना है कि इस शिकायत पर गौर करने के बजाय उलटे अपना दुख जाहिर करने वाली खिलाड़ी को ही कठघरे में खड़ा करने की कोशिश हुई। अगर यही हालत रही तो समझा जा सकता है कि देश के लिए खेलने वाले खिलाड़ियों में उत्साह का क्या पैमाना रहेगा। खेल सुविधाओं के अभाव और दूर-दराज के इलाकों या फिर शहरों-महानगरों तक में प्रतिभाओं की अनदेखी से लेकर खेलों में राजनीतिक दखलअंदाजी से उपजी समस्याएं छिपी नहीं रही हैं। पर ओलंपिक में भी अव्यवस्था और कुप्रबंधन के इस आलम के रहते क्या किसी बड़ी कामयाबी की उम्मीद की जा सकती है!