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बेईमानों के इस दौर में
युवा संवाद - मार्च 2018 अंक में प्रकाशित
बड़ी पीड़ा के साथ कहना पड़ रहा है कि भारतीय समाज मूलतः झूठा और बेईमान है। इसके साथ यह कहने की जरूरत नहीं है कि वह जातिवादी, सांप्रदायिक और पाखंडी है क्योंकि वह तो जगजाहिर है। दिक्कत यह हुई है कि मरीज स्वयं डाक्टर बन बैठा है और वह अपने इन्हीं स्वभावों के आधार पर श्रेष्ठता प्रदर्शित कर रहा है।...
यह जो बिहार है : विश्वविद्यालय के एक कोने से — डाॅ. योगेंद्र
बजट : जाने कहां गई यह सोच — कमल नयन काबरा
चंपारण सत्याग्रह : कहां है निलहे किसान? — शाहिद अमीन
21 मार्च शहादत : भगत सिंह और गांधी — अशोक भारत
गांधी और आंबेडकरः गांधी और आंबेडकर न होते — प्रकाश आंबेडकर
आंबेडकर बनाम हेडगेवार : जाति विनाश बनाम... — दिलीप मंडल
कांचा इलैया : बेकार के विवादों को हवा — आनंद तेलतुम्बड़े
विश्वविद्यालय अनुदान : नए प्रस्ताव के मायने — सिद्धार्थ
श्रमिक : श्रम कानूनों को बदलने की तैयारी — रवींद्र गोयल
खतरे में पत्रकारिता : अभिव्यक्ति को बढ़ता खतरा — भूपेन सिंह
चुटका परमाणु : पेसा कानून के खिलाफ हैः यह ...
आंदोलन समाचार : इंसाफ की चाह में नींदड़ के किसान
आंदोलन समाचार : ‘न जान देंगे, न जमीन देंगे’
आंदोलन समाचार : पुर्नवास के 37 साल बाद भी बेहाल
पुस्तक समीक्षा : पेशेवर महिलाएं: बदलती पीढ़ी... — शरद जायसवाल
साहित्य के दुश्मन : निशाने पर जूठन — सुभाष गाताडे
बेबाक : फिर आ गए हजूरिया और... — सहीराम